4 युगों की कहानी बयां करते हैं इस मंदिर के खंभे, तीन पहले से गिरे,अब बचा है आखिरी कलयुग का खंभा, जिसके गिरते ही खत्म होगी दुनिया!

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क्या आपने कभी ऐसे मंदिर की कहानी सुनी है जो न सिर्फ़ इतिहास को सहेजे हुए है बल्कि भविष्य के संकेत भी देता है? सोचिए… एक रहस्यमयी गुफा, बीच में लगभग पाँच फ़ीट ऊँचा एक खुद बना शिवलिंग, और चार खंभे जो चार युगों के राज़ बताते हैं, जिनमें से तीन तो समय के साथ पहले ही विलीन हो चुके हैं। कहते हैं, “अगर आखिरी खंभा गिर गया, तो कलियुग का आवरण भी उसी पल गिर जाएगा।”
महाराष्ट्र के हरिश्चंद्रगढ़ किले में मौजूद केदारेश्वर गुफा मंदिर सिर्फ़ एक धार्मिक जगह नहीं है; यह एक ऐसा रहस्य है जो सदियों से लोगों को हैरान करता आ रहा है। यहाँ आने वाला हर कोई यही कहता है, इस जगह की हवा, यह शांति… कुछ अलौकिक सा लगता है। ऐसा लगता है जैसे इस गुफा में समय रुक गया हो।
गुफा का रहस्य – जहाँ पानी का मिज़ाज भी बदल जाता है
केदारेश्वर गुफा की सबसे कमाल की बात यह है कि यहाँ साल भर पानी जमा रहता है। सर्दियों में यह पानी हल्का गुनगुना होता है, जबकि गर्मियों में यह बर्फ़ जितना ठंडा होता है। तापमान में यह बदलाव वैज्ञानिकों को भी हैरान कर देता है।
भक्तों का मानना है –
इस पानी में शिव शक्ति की एनर्जी हमेशा रहती है, इसीलिए यह बदलते मौसम पर रिएक्ट करता है। जैसे ही आप गुफा में अंदर जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे आप किसी दूसरे युग में कदम रख रहे हैं—शांत, रहस्यमयी और दिव्यता से भरा हुआ।
चार युगों के चार खंभे
केदारेश्वर मंदिर का सबसे चर्चित हिस्सा इस गुफा में मौजूद चार सिंबॉलिक खंभे हैं।
मान्यता के अनुसार, ये खंभे दिखाते हैं –
सत्य युग
त्रेता युग
द्वापर
कलियुग
आज, तीन खंभे टूट चुके हैं; सिर्फ़ एक खड़ा है—जो कलियुग को दर्शाता है।
स्थानीय लोग पीढ़ियों से कहते आ रहे हैं –
अगर आखिरी खंभा जिस दिन गिर जाएगा तो यह कलियुग के अंत का संकेत होगा और दुनिया का एक नया चक्र शुरू होगा।
इसलिए, इस मंदिर में जाना सिर्फ़ आस्था की बात नहीं है, बल्कि समय में यात्रा करने का एक आध्यात्मिक अनुभव है।
स्वयंभू शिवलिंग और इसका छटी सदी का इतिहास
गुफा के बीच में खड़ा पांच फुट ऊंचा शिवलिंग पूरी तरह से स्वयंभू माना जाता है।
लोककथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने यहां तपस्या की थी और उनके दिव्य रूप से एक शिवलिंग निकला था।
इतिहासकारों के अनुसार, इस जगह को छटी सदी में कलचुरी वंश ने बनवाया था।
ये गुफाएं बाद में ग्यारहवीं सदी में लोगों को पता चलीं।
सबसे ऊपर पत्थर की चोटी को शिव-शक्ति की एकता का प्रतीक माना जाता है।
प्रकृति की गोद में बसा हरिश्चंद्रगढ़ इस जगह को एक ही समय में रहस्य और आध्यात्मिक चमक का एहसास कराता है।
