Offbeat: मृत्यु के बाद आत्मा की तेरहवी में खाना खाने से लगता है महापाप? गरुड़ पुराण में बताई गई है ये बात

Offbeat: Is it a great sin to eat food on the thirteenth day of the soul after death? This is mentioned in Garuda Purana
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pc: indianews

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद तेरहवें दिन मृत्यु भोज आयोजित किया जाता है। ये परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। हिंदू धर्म के अनुसार, 16 संस्कारों में से अंतिम संस्कार अंत्येष्टि संस्कार है। शास्त्रों के अनुसार बारहवें दिन केवल ब्राह्मणों को ही भोज कराने की अनुमति है। मृत्यु भोज में अपनी श्रमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोज करवाया जाता है और मृतक की आत्मा की शांति के लिए दान किया जाता है। इसे ब्रह्म भोज कहते हैं।

क्या गरुड़ पुराण में मृत्यु भोज करना पाप है?

गरुड़ पुराण के अनुसार जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो आत्मा तेरहवें दिन तक परिवार के सदस्यों के साथ रहती है। इसके बाद आत्मा परलोक की यात्रा शुरू करती है। तेरहवें दिन भोजन कराने का पुण्य मृत आत्मा को मिलता है। इससे मृत आत्मा का परलोक सुधर जाता है। गरुड़ पुराण कहता है कि मृत्यु भोज केवल गरीबों और ब्राह्मणों के लिए होता है। अगर कोई अमीर व्यक्ति इसे खा ले तो यह गरीबों का हक छीनने के बराबर है। 

गीता में मृत्युभोज के बारे में क्या लिखा है?

महाभारत के अनुशासन पर्व की मानें तो मृत्युभोज खाने से व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। मृत्युभोज खाने से  होती है। एक बार दुर्योधन ने श्री कृष्ण को भोज के लिए आमंत्रित किया, लेकिन श्री कृष्ण ने कहा, सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनाई:, जिसका मतलब है भोजन तभी करना चाहिए जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो और खाने वाले का मन प्रसन्न हो।

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