आज इस विधि पूर्वक करें वट सावित्री व्रत पूजा

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सोमवार को अमावस्या तिथि होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। वट सावित्री व्रत के दौरान महिलाएं शिव-पार्वती, सावित्री-सत्यवान और वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन पवित्र नदी में दान करने और जरूरतमंदों को दान करने का भी विशेष महत्व है। वट वृक्ष की पूजा करने के कारण ही इसे वट सावित्री व्रत कहते हैं। आगे जानिए कैसे करें वट सावित्री व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा…

कब से कब तक रहेगी अमावस्या? 
ज्येष्ठ मास की अमावास्या तिथि 29 मई, रविवार को दोपहर 02.54 से शुरू हो हो चुकी है, जो 30 मई, सोमवार को शाम 04.59 मिनट तक रहेगी। 30 मई को पूरे दिन कभी भी पूजा की जा सकती है। इस दिन सर्वार्थसिद्धि, सुकर्मा, वर्धमान और बुधादित्य योग बन रहे हैं। वहीं, सोमवार होने से सोमवती अमावस्या का संयोग भी रहेगा।

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इस विधि से करें वट सावित्री व्रत
30 मई को सुबह वटवृक्ष (बरगद का पेड़) के नीचे महिलाएं व्रत का संकल्प लें और  एक टोकरी में सात प्रकार के अनाज रखकर, उसके ऊपर ब्रह्मा और ब्रह्मसावित्री व दूसरी टोकरी में सत्यवान व सावित्री की प्रतिमा रखकर बरगद के पेड़ के पास पूजा करें। इनके साथ ही यमराज की पूजा भी करें। वटवृक्ष की परिक्रमा करें और जल चढ़ाएं। इस दौरान नमो वैवस्वताय मंत्र का जाप करें। नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए देवीसावित्री को अर्घ्य दें-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तुते।।
वटवृक्ष पर जल चढ़ाते समय यह बोलें-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमै:।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैस्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।
इस प्रकार पूजा संपन्न होने के बाद अपनी सास व परिवार की अन्य बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लें। सावित्री-सत्यवान की कथा अवश्य सुनें।

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ये है सावित्री और सत्यवान की कथा… 
भद्र देश के राजा अश्वपति सावित्री का विवाह साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ था। लेकिन उनका राज्य दुश्मनों ने छिन लिया था। इसलिए वे वन में रहते थे। सत्यवान अल्पायु है ये जानकर भी सावित्री ने उससे विवाह करना स्वीकार किया। सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होने वाली थी उस दिन सावित्री भी उसके साथ जंगल में गई। सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ने लगा वैसे ही उसके सिर में तेज दर्द हुआ और वे सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गए। तभी यमराज आए और सत्यवान के प्राण निकालकर ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए और सावित्री की जीद के हारकर उन्हें सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े। 

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