Maida: मैदा से जुड़े 5 ऐसे मिथक जिन पर लोग आँख मूँद कर करते हैं विश्वास, जान लें सच्चाई

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मैदा का इस्तेमाल कई तरह के खाद्य पदार्थों में किया जाता है। भटूरा, पिज्जा और मोमोज जैसे व्यंजन इसके बिना अधूरे लगते हैं। मैदा को रिफाइंड आटा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह गेहूँ के आटे से बनता है, जिसमें से अधिकांश रेशे निकाल दिए जाते हैं, जिससे इसे अनहेल्दी माना जाता है। मैदा के सेवन को अक्सर वजन बढ़ने और खराब पाचन जैसी समस्याओं से जोड़ा जाता है। हो सकता है कि आपको मैदा के बारे में कुछ गलतफहमियाँ भी हों। आइए इसके बारे में कुछ आम मिथकों और तथ्यों पर गौर करें।

मिथक: मैदा आंतों में चिपक जाता है और पचता नहीं है।

तथ्य: एक आम धारणा है कि मैदा आंतों से चिपक जाता है। यह सच नहीं है। हालाँकि मैदा पानी में मिलने पर चिपचिपा हो जाता है, जिससे यह माना जाता है कि यह पाचन तंत्र में भी इसी तरह व्यवहार करता है, लेकिन ऐसा नहीं है। मैदा पकाने के बाद खाया जाता है, जिससे यह आंतों में मौजूद एंजाइमों की मदद से पच जाता है।

मिथक: मैदा बेहद अस्वास्थ्यकर होता है।

तथ्य: कई लोग मानते हैं कि मैदा पूरी तरह से अस्वास्थ्यकर होता है और इससे बचना चाहिए। सच तो यह है कि गेहूँ से प्राप्त मैदा रिफाइंड होता है। हालाँकि इसमें कई पोषक तत्वों की कमी होती है, लेकिन फाइबर युक्त सब्ज़ियों के साथ इसे सीमित मात्रा में खाने से शरीर को नुकसान नहीं पहुँचता।

मिथक: मैदा सिंथेटिक आटा है।
तथ्य: कुछ लोग मानते हैं कि मैदा अपनी रिफाइनिंग प्रक्रिया के कारण सिंथेटिक है। यह गलत है। मैदा गेहूँ को पीसकर और चोकर निकालकर बनाया जाता है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक है और इसमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं किया जाता है।

मिथक: मैदा मधुमेह रोगियों को नुकसान नहीं पहुँचाता है।
तथ्य: मैदे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स साबुत गेहूं के आटे से ज़्यादा होता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर तेज़ी से बढ़ता है। मधुमेह रोगी मैदे का सेवन कर सकते हैं, लेकिन बहुत सीमित मात्रा में।

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