Holi 2024: होली पर गोबर से ही क्यों बनाई जाती है प्रह्लाद और होलिका की प्रतिमा? जानें यहाँ
होलिका दहन, होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन होलिका दहन होता है और आग जलाने के लिए गाय के गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन, होलिका दहन का आयोजन किया जाता है, जिससे भारतीय समाज में भारी धूमधाम के साथ होली का त्योहार आरंभ होता है।
गोबर के उपलों से बनी मूर्तियों का महत्व:
पवित्रता का स्थान: हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और गोबर को शुद्धता का प्रतीक। गोबर के उपलों से बनी मूर्तियाँ पवित्रता को दर्शाती हैं और इसे धार्मिक क्रियाओं में उपयोग करने का सिद्धांत को बढ़ावा मिलता है।
आध्यात्मिक साधना: गोबर का उपयोग आध्यात्मिक साधना में होने वाले दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है। होलिका दहन के समय इन मूर्तियों को जलाने से धुआं उठता है, जिससे व्यक्ति अशुभ विचारों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
वास्तु दोष निवारण: मान्यता है कि गोबर के धुआं से वास्तु दोष और ग्रह दोष दूर होते हैं। होलिका दहन की राख को घर में रखने से वास्तु संबंधित समस्याएं दूर हो सकती हैं।
शुभता का प्रतीक: हिन्दू समाज में गाय को शुभता का प्रतीक माना जाता है, और गोबर की मूर्तियाँ होलिका दहन में जलाई जाती हैं ताकि इस समय शुभता का अच्छा प्रतीक हो।
धुआं का प्रभाव: होलिका दहन से उत्पन्न होने वाले धुआं को व्यक्ति अपने आसपास की नकारात्मकता से दूर कर सकता है और अपने जीवन में शांति और प्रशांति को बढ़ा सकता है।
गौ सेवा का संकेत: गोबर का इस्तेमाल होलिका दहन के रूप में गौ सेवा का भी हिस्सा है। इसके माध्यम से गौ माता को समर्पित किया जाता है और उसकी सुरक्षा की जाती है।