Breast cancer screening: क्या स्तन कैंसर के निदान के लिए सिर्फ़ मैमोग्राफी ही काफ़ी नहीं है? डॉक्टरों ने सुझाई एक और विधि

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गलत जीवनशैली और अनुचित खानपान के कारण कैंसर जैसी बीमारियों के मामले बढ़ गए हैं। अगर कैंसर का समय पर पता चल जाए और सही समय पर आगे का इलाज शुरू हो जाए, तो मरीज की जान भी बचाई जा सकती है। आजकल महिलाओं में स्तन कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा है। इस बीमारी के निदान के लिए आमतौर पर मैमोग्राफी की जाती है। यह मैमोग्राफी कैंसर का पता लगाने में मदद करती है। हालाँकि, विशेषज्ञों के अनुसार, यह जाँच सभी महिलाओं के लिए पर्याप्त नहीं है।
मैमोग्राफी अपर्याप्त क्यों है?
दुनिया भर में महिलाओं में स्तन परीक्षण के लिए मैमोग्राफी की जाती है। हालाँकि, भारतीय महिलाओं में स्तन ऊतक सघन होते हैं। इसलिए, मैमोग्राफी के दौरान अक्सर कैंसर के शुरुआती लक्षण दिखाई नहीं देते। इससे गलत निष्कर्ष निकलने की संभावना रहती है।
पश्चिमी देशों में मैमोग्राफी ज़्यादा कारगर हो सकती है। विशेषज्ञों ने इसका कारण बताते हुए कहा कि इन जगहों की महिलाओं में वसा ऊतक ज़्यादा होता है। हालाँकि, भारत में यह समस्या 45 साल की उम्र में शुरू होती है। जबकि पश्चिमी देशों में यह लगभग 55 साल बाद दिखाई देती है।
अल्ट्रासाउंड और स्व-परीक्षण
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत जैसे देश में स्तन कैंसर के निदान का एक प्रभावी तरीका अल्ट्रासाउंड है... यह विकल्प भारतीय महिलाओं के लिए ज़्यादा कारगर है। इसके अलावा, महिलाओं के लिए हर महीने अपने स्तनों की जाँच करना ज़रूरी है। इससे गांठ, निप्पल में बदलाव या त्वचा में बदलाव का स्व-परीक्षण के दौरान जल्दी पता लगाया जा सकता है। अगर महिलाओं को ये बदलाव दिखाई दें, तो उन्हें समय रहते डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
भारत में स्थिति ज़्यादा गंभीर है
स्तन कैंसर भारत में सबसे आम बीमारी बन गई है। इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों की तुलना में यह तेज़ी से फैलती भी देखी जा रही है। 40 से 50 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु देर से निदान या निदान के अभाव में होती है।
अस्पताल के शोध में क्या खुलासा हुआ?
टाटा मेमोरियल अस्पताल ने महिलाओं में स्तन कैंसर पर एक शोध किया था। इस शोध में पता चला कि नैदानिक परीक्षण के साथ-साथ मैमोग्राफी कराने पर भी सही निदान नहीं हो पाया और मृत्यु दर वही रही। संजय गांधी पीजीआई के एक अध्ययन के अनुसार, अगर महिलाएं हर महीने स्व-स्तन परीक्षण करें, तो बदलावों का जल्द पता लगाया जा सकता है। इससे समय पर इलाज मिलना भी संभव हो जाता है।
