Crime: 13 साल के रिलेशनशिप में महिला ने लगाया तीन बार अबॉर्शन का आरोप, फिर भी आरोपी बरी; कोर्ट ने बताई साफ वजह

PC: navarashtra
एक महिला ने एक कॉर्पोरेट मैनेजर पर शादी का झूठा झांसा देकर 13 साल तक उसके साथ रिलेशनशिप बनाने और फिर तीन बार अबॉर्शन कराने का चौंकाने वाला आरोप लगाया है। मुंबई सेशंस कोर्ट ने 30 साल की महिला के केस में कॉर्पोरेट मैनेजर को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि रिलेशनशिप आपसी सहमति से हुआ था। महिला पढ़ी-लिखी थी, उसे आरोपी की शादी और दूसरे हालात के बारे में पता था। कोर्ट ने कहा है कि आरोपी के शादी न करने पर महिला ने गुस्से में FIR दर्ज कराई थी।
असल मामला क्या है?
30 साल की महिला ने 2014 में माटुंगा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराई थी। महिला की शिकायत के मुताबिक, यह घटना 2000 से 2013 के बीच हुई थी। इस केस में सरकारी वकीलों ने दलीलें दीं। अपनी दलील में उन्होंने कहा कि आरोपी एक कंपनी में मैनेजर के तौर पर काम कर रहा था, आरोपी बीमार होने का बहाना करके महिला को अपने घर ले गया और फिर उसके साथ सेक्स करने लगा। उसने यह कहकर उसका यौन शोषण किया कि वह उससे प्यार करता है और शादी का वादा किया।
तीन बार अबॉर्शन
30 साल की महिला तीन बार प्रेग्नेंट हुई। आरोपी के कहने पर उसने तीनों बार 2001, 2010 और 2012 में अबॉर्शन करवाया था। इसके सबूत सरकारी वकीलों ने पेश किए। जब आरोपी ने उससे शादी करने से मना कर दिया, तो उनके रिश्ते खराब हो गए। 2013 में आरोपी ने महिला को धमकाया भी। यह सरकारी वकीलों ने दलील दी। दलील के बाद सात गवाहों से पूछताछ की गई। इस मामले में जज ने फैसला सुनाया कि सरकारी वकील भी अपना केस साबित करने में नाकाम रहे। उन्होंने उनसे आरोपी की शादीशुदा ज़िंदगी में कमियां बताने को कहा था।
महिला ने माना कि वह आरोपी की पत्नी से 2001-02 में मिली थी। इसका मतलब है कि जब उसने पहली बार आरोपी के साथ यौन संबंध बनाए, तो उसे पूरी तरह पता था कि आरोपी शादीशुदा है। महिला ने न सिर्फ़ रिश्ता जारी रखा, बल्कि यह भी माना कि आरोपी के बच्चे के जन्म के बाद उसने कंपनी में मिठाई भी बांटी थी। जज ने इस पर सफाई दी।
जज ने असल में क्या कहा
जज एस. एस. अडकर ने कहा कि जब रिश्ता शुरू हुआ, तो महिला की उम्र करीब 30 साल थी। वह एक मैच्योर महिला थी और उसे अपने साथ हो रही हर बात की जानकारी भी थी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि महिला के साथ धोखा हुआ। अगर उसे गलत जानकारी दी गई होती, तो उसे तुरंत पुलिस में शिकायत करनी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, जज ने साफ किया।
सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऐसे ही फैसलों का हवाला देते हुए जज ने यह नतीजा निकाला कि शादी के झूठे वादों और धोखाधड़ी को साबित करने के लिए किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती की ज़रूरत नहीं है। इसी मामले में जज ने आगे कहा कि इस मामले में दोनों के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमति से बने थे। पीड़ित को किसी भी तरह से मजबूर, गुमराह या गुमराह नहीं किया गया था। उसने जो भी किया, अपनी मर्ज़ी से किया।
