ये बात आपने सुनी होगी कि जब भी संसार में पाप बढ़ता है तो देवी देवता कोई अवतार लेकर धरती पर आते हैं और पाप का नाश करते हैं। हालाकिं एक निश्चित समय के बाद उनके शरीर का नाश हो जाता है लेकिन वे फिर भी अजर अमर हैं।
बात करें भगवान श्री कृष्ण की तो हमें पता है कि वे किन परिस्थितियों में पैदा हुए थे। लेकिन आज हम बात करने जा रहे हैं कि उनकी मृत्यु कैसे हुई।
महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण की सबसे अहम भूमिका ही और उन्ही ने इस युद्ध के रुख को पलटा था। ये युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था और भगवान श्री कृष्ण के कारण ही पांडव इस युद्ध को जीत पाए थे।
100 कौरव भाई होकर भी ये 5 पांडवों से हार गए थे। कुरुक्षेत्र में हुए इस भयानक नरसंहार के बाद कुछ ऐसा हुआ जिसने श्री कृष्ण की जिदंगी बदल दी थी। उन्हें एक श्राप मिला।
महाभारत युद्घ के बाद कौरवों की मां गांधारी दुख और गुस्से से विलाप कर रही थी। जब कृष्ण उनसे मिलने गई तो वे कृष्ण को देख कर आग बबूला हो गई और उन्होंने कृष्ण को ये शाप दे दिया कि उनके कुल का नाश भी ऐसे ही होगा।
इसके बाद श्रीकृष्ण वापस द्वारिका लौट आए। इसके बाद किसी विवाद को लेकर श्री कृष्ण के वंशजों ने अत्यधिक मदिरा पान का सेवन किया और वे एक दूसरे से लड़ने लगे। इस झगड़े ने विकराल रूप ले लिया और उन्होंने एक दूसरे को मार डाला।
दुखी मन से श्रीकृष्ण सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में रहने लगे। वहां जब बे ध्यान लगा कर बैठे तो एक विषैला तीर उनके पैरों पर आकर लगा।
जरा नाम के एक बहेलिया ने उन्हें हिरन समझ लिया था। इसलिए गलती से उनके प्राण चले गए। ( हम इन तथ्यों की तस्दीक नहीं करते हैं। यह केवल मान्यताओं के आधार पर प्रस्तुत किए गए हैं।)
